डेल्फिक डायलॉग में परंपरा, मध्यकाल और हिंदी साहित्य पर हुई चर्चा: माधव हाड़ा ने कहा-"परंपरा की निरंतरता में ही सभंव होती है आधुनिकता"
जयपुर। वरिष्ठ साहित्यकार, समालोचक एवं अकादमिक माधव हाडा ने कहा है कि आधुनिकता, परंपरा की निरंतरता में ही संभव होती है। हिंदी साहित्य का विकास भी निरंतर होता रहा है। मध्य काल से लेकर वर्तमान तक जितना भी साहित्य लिखा और पढ़ा गया है, वह तत्कालीन समय को परिभाषित करता है। हाड़ा शनिवार को डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान की श्रृंखला डेल्फिक डायलॉग में परंपरा मध्यकाल और हिंदी साहित्य विषय पर लेखक और संपादक पल्लव भी परिचर्चा कर रहे थे।
डेल्फिक काउंसिल राजस्थान की अध्यक्ष और वन एवं पर्यावरण विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा ने बताया कि डेल्फिक डायलॉग की 23वीं कड़ी के दौरान आज मोहिता दीक्षित ने हाड़ा और पल्लव का परिचय दिया। हाड़ा और पल्लव ने परंपरा मध्यकाल और हिंदी साहित्य पर विस्तारपूर्वक चर्चा करते हुए बताया कि आमतौर पर विमर्श परंपरा और आधुनिकता को एक दूसरे के विरोध में रखा जाता है, परंतु ऐसा नहीं है परंपरा की निरंतरता में ही आधुनिकता संभव हो पाती है। परंपरा का अग्रगामी कदम आधुनिकता होती है। जो आधुनिकता परंपरा पृष्ठभूमि और उसकी खाद-पानी से संभव नहीं हुई है, वह आधुनिकता नहीं कहलाएगी।
परंपरा के विरोध में खड़े होने को मुश्किल बताते हुए हाडा ने कहा कि ऐसा करने पर आपको समाज के बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। हाडा की पुस्तक पचरंग चोला का जिक्र करते हुए श्री पल्लव ने अवगत करवाया कि अंध दृष्टिकोण से किसी को देखना गलत है। यह एक तरह से जड़ता का प्रतीक है। हिंदी साहित्य में परंपरा को किसी एक दृष्टिकोण से नहीं देखने का जिक्र करते हुए हाड़ा ने बताया कि हर समय में सामग्री, श्रोता और संसाधन अलग-अलग हुए हैं। इसलिए किसी को भी कमतर आंकना सही नहीं रहेगा। अंत में सूत्रधार दीक्षित ने हाड़ा और पल्लव का आभार व्यक्त किया।
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