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रुस्तम-ए-हिंद: भारत का एक ऐसा पहलवान जो कभी नहीं हारा कुश्ती...

आज गूगल ने 1200 किलो का पत्थर उठाने वाले गामा पहलवान को याद किया है। आज एक ऐसे पहलवान की जयंती मना रहे हैं जिसने दुनियाभर में अपनी ताकत का लोहा मनवाया। बता दें कि गूगल ने आज डूडल के माध्यम से गामा पहलवान को याद किया है जो आजादी से पहले भारत के सबसे प्रसिद्ध पहलवानों में गिने जाते थे। कुश्ती की दुनिया में गामा का नाम सबकी जुबां पर था। उन्हें रुस्तम-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता है। जबकि कुश्ती की रिंग में वे द ग्रेट गामा के नाम से मशहूर थे। 

गूगल का कहना है कि Bruce Lee भी उनके प्रशंसकों में से एक रहे हैं, जो उनके ट्रेनिंग रुटीन के दीवाने थे। गामा पहलवान का जन्म सन् 1878 में अमृतसर में हुआ था। उनका नाम गुलाम मुहम्मद बख्श दत्त था। पहलवानों के परिवार में जन्मे गामा को पहलवानी विरासत में मिली थी। सन् 1910 में गामा को वर्ल्ड हेवीवेट टाइटल दिया गया था। 

उनकी बदनतोड़ मेहनत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल 10 साल की उम्र में वो 500 बैठक और 500 पुश-अप लगाया करते थे। ये उनके रोज के रुटीन में शामिल था। 1888 में उनको बैठक प्रतियोगिता में जीत हासिल हुई जिसमें देशभर के 400 पहलवानों ने हिस्सा लिया था। यहीं से उनको कम उम्र में ही प्रसिद्धि मिलने लगी।

उनके एक कारनामे को आज भी याद किया जाता है, जब 1902 में उन्होंने 1200 किलोग्राम के पत्थर को उठा लिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक अब वह पत्थर बरोदा के म्यूजियम में रखा गया है। कुश्ती में उनके मुकाबलों में से एक प्रसिद्ध मुकाबला रहीम बख्श सुल्तानीवाला के साथ गिना जाता है। सुल्तानीवाला 7 फीट के लगभग ऊंचे पहलवान थे जबकि गामा की हाइट 5.8 फीट थी। दोनों में चार बार भिड़ंत हुई जिसमें पहले तीन मुकाबले ड्रॉ हुए और चौथे में गामा ने जीत हासिल की। 

बता दें कि गामा की ताकत से प्रभावित होकर भारत घूमने आए प्रिंस ऑफ वेल्स ने उन्हें चांदी की गदा सम्मान के रूप में भेंट की थी। गामा ने अपने आखिरी दिन लाहौर में गुजारे थे और 1960 में उनका देहांत हो गया। गूगल ने आज महान गामा को याद किया है जिन्होंने पहलवानी के क्षेत्र में भारत का नाम दुनियाभर में प्रसिद्ध किया।

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